गधे को बाप बनाना
"वर्मा साहब! आपसे कितनी बार तो कहा है कि हम मनुष्यों की प्रवृत्ति ऐसी ही होती है कि वह अपना काम निकलवाने के लिए गधे को भी बाप बना सकती है लेकिन मेरी बात आप मानते ही नहीं। किस जमाने में जी रहे हैं आप? आज तक आपकी ईमानदारी की कद्र हमारे बॉस ने की है जो आज करेंगे इसीलिए तो आज तक कहता आया हूॅं कि आप भी हमारी टीम में आ जाइए। आपको ज्यादा कुछ नही सिर्फ बाॅस की हाॅं में हाॅं ही तो मिलानी है। इतना छोटा काम करने के लिए आपको बहुत वक्त लग रहा था। यदि आपने हम सबकी देखा देखी ये सीख लिया होता तो आज ये नौबत ही ना आती।" सौरभ शर्मा ने अपने सीनियर ऋषभ वर्मा के पास रखी खाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
कम शब्दों में कहूं तो इस दुनिया में कुछ लोग होते हैं जिन्हें अपने आत्मसम्मान से कुछ ज्यादा ही लगाव होता है और मेरा आत्मसम्मान आप लोगों जैसी हरकतें करने की गवाही नहीं देता है क्योंकि जहां तक मेरा मानना है, वह यह है कि जब कोई व्यक्ति अपना आत्मसम्मान खो देता है और प्रगति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के बावजूद भी जो आत्मसम्मान खोने से पहले उसकी इज्जत दूसरों के सामने बनी हुई थी, अब वह उसे कभी भी नहीं बना सकता है। यह बात तुम भी जानते हो कि मेरी नजर में तुम लोगों ने प्रमोशन पाने के लिए अपनी इज्जत इतनी गिरा ली है कि उसे अब कभी भी उठाया नहीं जा सकता है। मैं ये भी जानता हूॅं कि तुम मेरे दोस्त, मेरा हमदर्द होने का सिर्फ दिखावा करते हो और यहां पर तुम मेरा दोस्त, मेरा हमदर्द बन कर नहीं आए बल्कि बॉस के चमचे बन कर आए हो और.... "।
" तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे बॉस का चमचा कहने की? बॉस के पिता ने तुम्हें अपने सर पर चढ़ा रखा है इसका मतलब यह नहीं कि तुम किसी को भी कुछ भी बोल सकते हो।" ऋषभ वर्मा अपनी बात पूरी कर पाता इससे पहले ही सौरभ शर्मा ने गुस्से में तमतमाते हुए जोर से कुर्सी को अपने पीछे धक्का दिया और अपनी उंगली ऋषभ वर्मा की तरफ करते हुए कहा ।
सौरभ शर्मा के गुस्से से लाल चेहरे को देखते हुए ऋषभ वर्मा सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया। आसपास और भी लोग इकट्ठे होने लगे थे और उसकी तरफ ही देख रहे थे इससे बढ़कर सौरव शर्मा के लिए यह बात थी कि उसे किसी भी तरह आज ऋषभ वर्मा से उस फ़ाइल पर साइन कराने थे जो ऋषभ के हस्ताक्षर के बिना आगे नही बढ़ सकती थी।
कहने को तो उस कंपनी में बॉस की कुर्सी पर बैठा हुआ शख्स ही उस कंपनी का सर्वेसर्वा होता है लेकिन एक पिता ने अपने बेटे के मिजाज को देखते हुए कुछ ऐसे निर्णय थे जो कंपनी में काम कर रहे होनहार और अनुभवी हाथों को सौंप रखे थे, उन्हीं में से एक हाथ था ऋषभ वर्मा का।
ऋषभ वर्मा ने कंपनी को इस शिखर तक पहुंचाने में अपने दिलोदिमाग के साथ- साथ अपनी ईमानदारी भी दे रखी थी और इस बात को कंपनी के मालिक ऋषिकेश मेहरा अच्छी तरह जानते थे। उन्हीं के संरक्षण में वे चाहते थे कि उनका बेटा कार्तिक मेहरा भी उसी तरह इस कंपनी को आगे ले जाए जिस तरह से वह लेकर आए थे लेकिन शायद! उन्हें इसका अंदाजा था कि उनके बेटे कार्तिक के अंदर इच्छा शक्तियों की ऐसी भरमार है जो कभी खत्म नहीं हो सकती, उनका मानना यह भी था कि किसी भी व्यक्ति के भीतर इच्छा शक्तियों का समावेश होना स्वाभाविक है लेकिन इस इच्छाशक्ति के लिए वह सही और गलत में फर्क भूल जाए, यह उन्हें गवारा नहीं था। आज तक उन्होंने किसी भी मजबूर का फायदा उठाकर उससे काम नहीं निकलवाया था और ना ही किसी घर वाले को भी बेघर ही किया था लेकिन इसका अंदाजा शायद उन्हें लग गया था कि उनका बेटा जो आज तक उन्होंने नहीं किया, वह भी कर सकता है और यही वजह थी कि उसे रोकने के लिए उन्होंने कुछ इंतजाम कर रखे थे।
कार्तिक मेहरा को भी इस बात की बखूबी जानकारी थी कि उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा ऋषभ वर्मा ही है। प्रमोशन के प्रलोभन के अलावा बहुत सारी ऐसी ख्वाहिशों को पूरा करने का भी प्रलोभन कार्तिक मेहरा ने ऋषभ वर्मा के सामने पेश की थी सिर्फ इसलिए कि वह उन कामों में दखल ना दें जो वह करना चाहता है।
"खैरात के साथ से इज्जत का अकेलापन ही बेहतर है" इस बात पर अडिग ऋषभ वर्मा ने कभी भी कार्तिक मेहरा के उन निर्णयों पर उसका साथ नहीं दिया जो जनकल्याण के लिए बाधा साबित होते। उसका मानना था कि जिस देश में हम रहते हैं और जिनके कारण इतनी बड़ी कंपनी चल रही है उनके साथ नाइंसाफी नहीं होनी चाहिए।
कार्तिक मेहरा का साथ उसने कुछ समय तक के लिए दिया था क्योंकि उसे लगा था कि शायद! अपने पिता के पद चिन्हों पर कार्तिक मेहरा चलने लगा है लेकिन जब उसने अपने कानों से मजदूरों के घर को बेघर कर उस जमीन पर बहुमंजिली इमारत बनाने वाली बात सुनी और उन मजदूरों को मीठी मीठी बातें और कुछ पैसों का प्रलोभन देकर उन्हें उनके ही घर से निकालने की बात समझ में आई तब से उसने कार्तिक मेहरा और उनके चमचों का साथ देना बंद कर दिया था और आज यह नौबत आ गई थी कि गुस्से में बॉस कार्तिक मेहरा ने उन्हें रिजाइन करने के लिए कह दिया था।
गधे को बाप बनाने वाली कहावत को ध्यान में रखकर ही सौरव शर्मा जो ऋषभ वर्मा को आज तक अपने पैरों की धूल तक नहीं समझता था, अभी अपनी इतनी बेज्जती होने के बाद भी उसे मनाने की हर संभव कोशिश कर रहा था क्योंकि वह भी जानता था कि उसके बॉस सिर्फ नाम मात्र के बॉस है, इस कंपनी का सारा पावर तो अभी तो ऋषिकेश मेहता के पास ही है जो अभी भी अपने बेटे पर नहीं बल्कि ऋषभ वर्मा पर विश्वास करते थे।
ऋषभ वर्मा भी गधे को बाप बनाने वाले मुहावरे का अर्थ अच्छी तरह समझते थे और इसीलिए तो मुस्कुरा भी रहे थे, उन्हें मालूम था और वह मन ही मन में यह सोच भी रहे थे कि मुझे मूर्ख समझने वाला यह सौरव शर्मा अभी भी मेरे पास इसलिए खड़ा है क्योंकि उसे और उसके बॉस को अभी भी उम्मीद है कि वह गधे को बाप बनाने में कामयाब हो जाएगा। मैं इनके दिमाग में चल रहे मुहावरे को चरितार्थ करने में उसका साथ दूंगा लेकिन अपनी कुछ शर्तों के साथ, जिसमें किसी का भी अहित शामिल ना हो।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💗 💞 💗
# मुहावरों की दुनिया
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
01-Feb-2023 04:36 PM
शानदार
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Sant kumar sarthi
21-Jan-2023 03:32 PM
बेहतरीन
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Mohammed urooj khan
18-Jan-2023 04:24 PM
👌👌👌👌
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